BA Semester-3 Defence and Strategic Studies - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-3 रक्षा एवं स्त्रातजिक अध्ययन - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 रक्षा एवं स्त्रातजिक अध्ययन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2648
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 रक्षा एवं स्त्रातजिक अध्ययन

प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये -(i) सुरक्षा परिषद् (Security Council), (ii) वारसा पैक्ट (Warsa Pact), (iii) उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO), (iv) दक्षिण पूर्वी एशिया संधि संगठन (SEATO), (v) केन्द्रीय संधि संगठन (CENTO), (vi) आसियान (ASEAN)

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद का संक्षेप में वर्णन कीजिये।
2. वारसा पैक्ट पर प्रकाश डालिये।
3. नाटो क्या है? संक्षेप में बताइये।
4. आसियान क्या है? संक्षेप में व्याख्या कीजिये।

उत्तर

(i) सुरक्षा परिषद
(Security Council)

सुरक्षा परिषद को संयुक्त राष्ट्र संघ का एक कार्यकारी ( Executive) अंग माना जाता है। सुरक्षा परिषद विश्वशान्ति एवं सुरक्षा का प्रहरी कहलाता है। महासभा की तुलना में सुरक्षा परिषद बहुत छोटी संस्था है, किन्तु इसकी शक्ति बहुत अधिक है।

सुरक्षा परिषद के 15 सदस्य है, जिनमें अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्राँस और चीन स्थायी सदस्य है। इसके अतिरिक्त 10 सदस्य अस्थाई है, जिनका चुनाव संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा के द्वारा दो वर्षों के लिये किया जाता है। अस्थायी सदस्यों का चुनाव भौगोलिक वितरण के आधार पर किया जाता है, जिसमें एशिया व अफ्रीका से 5, लैटिन अमेरिका से 2, पश्चिमी यूरोप से 2 और पूर्वी यूरोप से 1 सदस्य का चुनाव किया जाता है। सुरक्षा परिषद बड़ी खूबी से चलती है। सुरक्षा परिषद के प्रत्येक सदस्य को मतदान का अधिकार प्राप्त होता है। कार्यवाही सम्बन्धी मामलों पर कम से कम 9 सदस्यों के द्वारा सकारात्मक मत देने पर ही प्रस्ताव पारित हुआ माना जाता है। इसके अतिरिक्त अन्य सभी मामलों में 9 सदस्यों के सकारात्मक मतों में पांचों स्थायी सदस्यों के मत अनिवार्य रूप से सम्मिलित होने आवश्यक हैं, अन्यथा वह प्रस्ताव पारित नहीं हो सकता। इसके ही 'निषेधाकार' या 'वीटो' (Veto) कहा जाता है।

सुरक्षा परिषद के कार्य तथा शक्तियाँ

1. संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर के अनुच्छेद 24 अनुसार सुरक्षा परिषद का सर्वप्रथम कार्य अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा बनाये रखना है।
2. अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को शान्तिपूर्ण ढंग से निपटाना तथा साथ ही शान्ति को खतरे में डालने वाली, शान्ति भंग और आक्रामक कार्यों के बारे में कार्यवाही करना।
3. यदि कोई भी राष्ट्र अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा को खतरा पैदा करता है तो सुरक्षा परिषद उस राष्ट्र पर आर्थिक प्रतिबन्ध लगा सकती है तथा उसके साथ राजनयिक सम्बन्ध तोड़ सकती है। ( अनुच्छेद 41 व 42 )

(ii) वारसा पैक्ट (Warsa Pact)

सोवियत रूस - उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO) से सशंकित होकर प्रतिक्रियात्मक पग उठाने को बाध्य हुआ और उसने मित्र राष्ट्रों के साथ मिलकर वारसा सन्धि का सूत्रपात किया। इसे पूर्वी यूरोपियन संधि संगठन भी कहते हैं।

इस संगठन संधि की स्थापना 15 मई, 1955 को पोलैण्ड की राजधानी वारसा में हुई। इसमे पूर्वी यूरोप के 8 प्रमुख देशों अल्बानिया, चेकोस्लाविया, पूर्वी जर्मनी, पोलैण्ड, बुल्गारिया, हंगरी, रूमानिया और सोवियत रूस ने 20 वर्ष के लिये वारसा सन्धि की। इस सन्धि में मात्र 14 धारायें हैं। सुरक्षा और शान्ति के उद्देश्यों पर आधारित इस सन्धि में कहा गया है कि पश्चिम यूरोप के संघ तथा पश्चिमी जर्मनी के शस्त्रीकरण ने यह आवश्यक बना दिया है कि वह अपने सुरक्षा प्रयत्नों को दृढ़ करके शान्ति स्थापित करें। संधि में सामूहिक सुरक्षा के सिद्धान्त को स्वीकारा गया है तथा सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक सहयोग की प्रतिज्ञा की गयी है।

वारसा सन्धि की सैनिक शक्ति इस प्रकार थी -

थल सैनिक 26 लाख,
नौसैनिक 5 लाख,
वायु सैनिक 6-9 लाख,
टैंक 15000
विमान 2500,
हेलीकाप्टर 625,
युद्धपोत 456,
पनडुब्बियाँ 8
प्रक्षेपास्त्र 960 |

(iii) उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन
(North Atlantic Treaty Organisation - NATO)

नाटो की स्थापना 4 अप्रैल, 1948 में हुई। बेल्जियम, फ्राँस लक्समबर्ग युनाइटेड, किंगडम, नीदरलैण्ड, कनाडा, डेनमार्क, आइसलैण्ड, इटली, नार्वे, पुर्तगाल और संयुक्त राज्य अमेरिका के विदेश मंत्रियों ने वाशिंगटन में इस संधि पर हस्ताक्षर किये थे। यह 20 वर्षीय सन्धि है। अब इसके कुल सदस्यों की संख्या 115 हो गई है। प्रारम्भ में इसका मुख्यालय ब्रूसेल में था, जिसे जनवरी 1994 में बेल्जियम के एक अन्य नगर मोन्स में स्थानान्तरित कर दिया गया है।

संगठन का स्वरूप एवं कार्यवाही - इस संगठन की सर्वोच्च सत्ता नाटो काउंसिल में होती है। इस काउंसिल की बैठक वर्ष में दो या तीन बार होती है। कार्य संचालन के लिए मुख्य सचिव एवं उसका सचिवालय होता है। मुख्य सचिव ही काउंसिल का चेयरमैन होता है।

नाटो की सर्वोच्च शक्ति सैनिक समिति में निवास करती है। इस समिति की रचना सदस्य राष्ट्रों के मुख्य सैन्याधिकारियों के द्वारा की जाती है। स्थाई समुदाय में सैनिक समिति की कार्यपालक शक्तियाँ निहित होती हैं और यह स्थाई रूप से वाशिंगटन में कार्य करती हैं।

कमान क्षेत्र - नाटो सन्धि संगठन के तीन कमान क्षेत्र हैं -

(i) यूरोपीय कमान,
(ii) अटलांटिक कमान,
(iii) ब्रिटिश की कमान।

नाटो के उद्देश्य - नाटो की स्थापना के निम्नलिखित मुख्य उद्देश्य थे -

(i) पूर्व सोवियत संघ को यह चेतावनी देना कि यदि उसने इस सन्धि पर हस्ताक्षर करने वाले किसी राष्ट्र पर आक्रमण किया तो संयुक्त अमेरिका तुरन्त उस राष्ट्र की सहायता करेगा।
(ii) यूरोपियन राष्ट्रों को सुरक्षा का आवरण प्रदान करेगा, ताकि वे अपने आर्थिक और सैनिक विकास के कार्यक्रमों को निर्भय होकर पूरा कर सकें।

नाटो की सैन्य शक्ति नाटो की सैन्य शक्ति इस प्रकार है -

थल सैनिक--------------26,00,000
वायु सैनिक-------------11,00,000
नौसैनिक---------------11,00,000
टैंक---------------------16,500
विमान-----------------3,800
हेलीकॉप्टर------------2,400
युद्धपोत----------------1,126
पनडुब्बियाँ------------133
प्रक्षेपास्त्र--------------891

इन सेनाओं को आणविक शस्त्रों से सुसज्जित किया गया है। आज नाटो के पास 7,200 से भी अधिक आणविक शस्त्र हैं। नाटो के पास प्रक्षेपास्त्रों के आधुनिकीकरण की भी व्यवस्था है। इन प्रक्षेपास्त्रों की मारक क्षमता 1600 से 2400 कि०मी० तक है।

(iv) दक्षिण पूर्वी एशिया संधि संगठन सीटो
(South-East Asian Treaty Organisation - SEATO)

1953 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल ने अमेरिका के सम्मुख यह प्रस्ताव रखा था कि दक्षिणी-पूर्वी एशिया के लिए नाटो जैसे एक संगठन की स्थापना की जाये। उधर आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैण्ड भी प्रशान्त महासागर में साम्यवाद का प्रसार अपने लिए घातक समझ रहे थे। इसी बीच हिन्द चीन की लड़ाई गंभीर हो गई, जिसके फलस्वरूप दक्षिणी पूर्वी एशिया संधि संगठन की स्थापना 8 सितंबर, 1954 को हुई। इस सन्धि संगठन का सम्मेलन 6 सितंबर, 1954 को फिलिपाइन्स द्वीप समूह के 'बाग्यो' नामक स्थान पर बुलाया गया था।

सीटो के उद्देश्य - सीटो सन्धि की विभिन्न धाराओं में इसके उद्देश्यों का वर्णन मिलता है जो निम्नलिखित है-

1. अंतर्राष्ट्रीय विवादों के शान्तिपूर्ण निपटारे की तथा अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में किसी भी रूप में शक्ति प्रयोग और धमकी का मार्ग न अपनाया जाये।
2. आर्थिक उन्नति और सामाजिक कल्याण के लिए सीटो के सभी राष्ट्र सहयोग देंगे। 3. इस संगठन के किसी भी राष्ट्र के ऊपर आक्रमण का इस संगठन के सभी राष्ट्र मिलकर सामना करेंगे।

आलोचना - इस सन्धि संगठन की आलोचना करते हुए तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू जी ने कहा था “यह संगठन राष्ट्र संघ की भावना के विरुद्ध है, इससे विश्व में शान्ति की वृद्धि के स्थान पर तनाव और असुरक्षा बढ़ेगी। यह एक प्रकार का मुनरो सिद्धान्त है।"

(v) केन्द्रीय संधि संगठन - सेन्टो
(Central Treaty Organisation - CENTO)

द्वितीय महायुद्ध के पूर्व पश्चिम एशिया पर ब्रिटेन का अधिकार था। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में स्वेज नहर और तेल कूपों को लेकर पूर्वी एशिया का अत्याधिक महत्व है। राष्ट्रवाद के बवन्डर का सबसे बड़ा प्रभाव यह पड़ा कि ब्रिटिश फौजों को मिस्र तथा स्वेज नहर का क्षेत्र खाली कर देना पड़ा। अब अमेरिका को यह भय हुआ कि कहीं रूस इन तेल कूपों के कारण इस क्षेत्र में अधिकार न कर ले। अतः इस परिस्थिति को ध्यान में रखकर 1953 ई. में अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन फास्टर डलेस ने मध्य पूर्व के देशों की यात्रा कर टर्की, ईरान आदि को प्रेरित करके एक सुरक्षा संगठन बनाने का आह्वान किया।

उद्देश्य -

(i) इस संगठन का प्रमुख लक्ष्य व उद्देश्य मध्यपूर्व में साम्यवादी प्रभावों को रोक कर ब्रिटेन तथा अमेरिका के हितों को पूरा करने के लिये प्रयास करना था।
(ii) इसका दूसरा उद्देश्य संधि में सम्मिलित सदस्य राष्ट्रों की सुरक्षा व्यवस्था करना, एक-दूसरे के आन्तरिक मामले में हस्तक्षेप न करना तथा इस सन्धि के प्रतिकूल उद्देश्यों वाली किसी अन्तर्राष्ट्रीय संस्था में सम्मिलित न होना था।

(vi) दक्षिण-पूर्वी एशियाई राष्ट्रों का संगठन आसियान
(Association of South East Asian Nation - ASEAN)

दक्षिण-पूर्वी एशिया में आर्थिक प्रगति को त्वरित करने के लिए एवं उसके आर्थिक स्थायित्व को बनाये रखने के उद्देश्य से 8 अगस्त, 1967 ई. को इस संगठन (आसियान) की स्थापना की गयी। यह इंडोनेशिया, फिलीपींस, मलेशिया, सिंगापुर तथा थाईलैण्ड का एक प्रादेशिक संगठन है। वास्तव में वियतनाम संकट, वियतनाम में अमेरिकी साम्राज्यवादी मंसूबा, कम्बोडिया का राजनैतिक संकट एवं इंडोनेशिया, बर्मा एवं लाओस के पारस्परिक प्रयत्नों से ही विकास करने की अनिवार्यता ने उक्त देशों को आसियान के गठन की प्रेरणा दी। यह संगठन पूर्णतया असाम्यवादी है।

इसका केन्द्रीय सचिवालय जकार्ता (इण्डोनेशिया) में है। आसियान के सदस्य राष्ट्र दक्षिण- पूर्व एशिया को शान्त स्वाधीन एवं निर्गुट क्षेत्र बनाये रखते हुये बाहरी हस्तक्षेप के विरुद्ध बड़े राष्ट्रों का आश्वासन चाहते हैं और युद्ध विप्लव या विद्रोह तथा अशान्ति आदि सभी समस्याओं का समाधान लोगों की आर्थिक प्रगति के माध्यम से खोजने का प्रयत्न करते हैं। भारत 23 जनवरी, 1992 ई. को आसियान का वार्ता सहयोगी बन गया है। भारत ने व्यापार पर्यटन तथा निवेश आदि विषयों पर आसियान संगठन का वार्ता सहभागी बनाने का आवेदन किया था।

आसियान का संगठन - प्रत्येक सदस्य राज्य की राजधानी में एक राष्ट्रीय आसियान सचिवालय होता है तथा इसका प्रमुख एक सचिव होता है। आसियान के महासचिव का पद हर दो वर्ष के लिए प्रत्येक राष्ट्र को अकारदि क्रम में चुनाव के आधार पर दिया जाता है। इसका केन्द्रीय सचिवालय जकार्ता (इण्डोनेशिया) में है। 1 जनवरी, 1993 ई. से आसियान मुक्त व्यापार क्षेत्र अस्तित्व में आया। आसियान की नौ स्थायी एवं आठ अस्थायी समितियाँ भी होती हैं, जो अपने-अपने विशिष्ट कार्यों की देखभाल करती हैं।

आसियान के उद्देश्य - आसियान के लक्ष्य एवं उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

1. इसका लक्ष्य वर्ष 2008 तक दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में समस्त व्यापारिक प्रतिबन्धों एवं बाधाओं को दूर कर मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाना है।
2. आर्थिक सहयोग में वृद्धि तथा स्थायित्व स्थापित करना और दीर्घकालीन व्यावहारिक समझौते के प्रयत्न करना।
3. क्षेत्रीय शान्ति एवं सुरक्षा कायम रखना।
4. क्षेत्रीय विशाल औद्योगिक इकाइयों की स्थापना करना, जोकि सदस्य देशों को कच्चा माल प्रयुक्त करेंगी।
5. तकनीकी तथा सांस्कृतिक क्षेत्रों में आपसी सहयोग करना।
6. सदस्य राष्ट्रों की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करना।
7. समान उद्देश्यों एवं लक्ष्यों वाले अन्य क्षेत्रीय व अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ लाभप्रद एक मधुर सम्बन्धों की स्थापना करना।
8. दक्षिण-पूर्वी एशियाई अध्ययन को प्रोत्साहित करना।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- राष्ट्र-राज्य की अवधारणा से आप क्या समझते हैं?
  2. प्रश्न- राष्ट्र राज्य की शक्ति रचना दृश्य पर एक लेख लिखिये।
  3. प्रश्न- राष्ट्र राज्य से आप क्या समझते हैं?
  4. प्रश्न- राष्ट्र और राज्य में क्या अन्तर है?
  5. प्रश्न- राष्ट्रीय सुरक्षा से आप क्या समझते हैं? राष्ट्रीय सुरक्षा को परिभाषित कीजिए तथा सुरक्षा के आवश्यक तत्वों का उल्लेख कीजिए।
  6. प्रश्न- राष्ट्रीय सुरक्षा को परिभाषित करते हुए सुरक्षा के निर्धारक तत्वों की व्याख्या कीजिए।
  7. प्रश्न- राष्ट्रीय सुरक्षा की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए। राष्ट्रीय हित में सुरक्षा क्यों आवश्यक है? विवेचना कीजिए।
  8. प्रश्न- राष्ट्रीय सुरक्षा को परिभाषित कीजिए।
  9. प्रश्न- राष्ट्रीय रक्षा के तत्वों पर प्रकाश डालिए।
  10. प्रश्न- राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सामाजिक समरसता का क्या महत्व है?
  11. प्रश्न- भारत के प्रमुख असैन्य खतरे कौन से हैं?
  12. प्रश्न- भारत की रक्षा नीति को उसके स्थल एवं जल सीमान्तों के सन्दर्भ में बताइये।
  13. प्रश्न- प्रतिरक्षा नीति तथा विदेश नीति में सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
  14. प्रश्न- राष्ट्रीय सुरक्षा का विश्लेषणात्मक महत्व बताइये।
  15. प्रश्न- रक्षा नीति को प्रभावित करने वाले मुख्य तत्वों के विषय में बताइये।
  16. प्रश्न- राष्ट्रीय रक्षा सुरक्षा नीति से आप क्या समझते है?
  17. प्रश्न- भारत की रक्षा नीति का वर्णन कीजिये।
  18. प्रश्न- राष्ट्रीय शक्ति को परिभाषित करते हुए शक्ति की अवधारणा का वर्णन कीजिये।
  19. प्रश्न- राष्ट्रीय शक्ति की रूपरेखा बताइये।
  20. प्रश्न- राष्ट्रीय शक्ति को परिभाषित कीजिए तथा अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में इसके महत्व की विवेचना कीजिए।
  21. प्रश्न- राष्ट्र-राज्य की शक्ति रचना दृश्य पर एक लेख लिखिये।
  22. प्रश्न- राष्ट्रीय शक्ति के तत्वों का परीक्षण कीजिये।
  23. प्रश्न- "एक राष्ट्र के प्राकृतिक संसाधन उसकी शक्ति निर्माण के महत्वपूर्ण तत्व है।' इस कथन की व्याख्या भारत के सन्दर्भ में कीजिए।
  24. प्रश्न- "किसी देश की विदेश नीति उसकी आन्तरिक नीति का ही प्रसार है।' इस कथन के सन्दर्भ में भारत की विदेश नीति को समझाइये।
  25. प्रश्न- भारतीय विदेश नीति पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  26. प्रश्न- कूटनीति से आप क्या समझते हैं?
  27. प्रश्न- कूटनीति का क्या अर्थ है? बताइये।
  28. प्रश्न- कूटनीति और विदेश नीति का सह-सम्बन्ध बताइये।
  29. प्रश्न- 'शक्ति की अवधारणा' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  30. प्रश्न- राष्ट्रीय शक्ति पर मार्गेनथाऊ के दृष्टिकोण की व्याख्या कीजिये।
  31. प्रश्न- राष्ट्रीय शक्ति के आर्थिक तत्व का सैनिक दृष्टि से क्या महत्व है?
  32. प्रश्न- राष्ट्रीय शक्ति बढ़ाने में जनता का सहयोग अति आवश्यक है। समझाइये।
  33. प्रश्न- विदेश नीति को परिभाषित कीजिये तथा विदेश नीति रक्षा नीति के सम्बन्धों की विवेचना कीजिये।
  34. प्रश्न- सामूहिक सुरक्षा से आप क्या समझते हैं? वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- शीत युद्ध के बाद के अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा वातावरण पर एक निबन्ध लिखिये।
  36. प्रश्न- संयुक्त राष्ट्र संघ (U.N.O.) पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
  37. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये -(i) सुरक्षा परिषद् (Security Council), (ii) वारसा पैक्ट (Warsa Pact), (iii) उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO), (iv) दक्षिण पूर्वी एशिया संधि संगठन (SEATO), (v) केन्द्रीय संधि संगठन (CENTO), (vi) आसियान (ASEAN)
  38. प्रश्न- शक्ति सन्तुलन की अवधारणा स्पष्ट कीजिए तथा इनके लाभ पर प्रकाश डालिए?
  39. प्रश्न- क्या संयुक्त राष्ट्र संघ विश्व में शान्ति स्थापित करने में सफल हुआ है? समालोचना कीजिए।
  40. प्रश्न- सार्क पर एक निबन्ध लिखिए।
  41. प्रश्न- शक्ति सन्तुलन के विभिन्न रूपों तथा उद्देश्यों का वर्णन करते हुए इसके सिद्धान्तों पर प्रकाश डालिए।
  42. प्रश्न- निःशस्त्रीकरण को परिभाषित करते हुए उसके प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  43. प्रश्न- शक्ति सन्तुलन की अवधारणा की व्याख्या कीजिये।
  44. प्रश्न- 'क्षेत्रीय सन्धियों' पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  45. प्रश्न- समूह 15 ( G-15) क्या है?
  46. प्रश्न- स्थाई (Permanent) तटस्थता तथा सद्भावनापूर्ण (Benevalent) तटस्थता में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  47. प्रश्न- नाटो (NATO) क्या है?
  48. प्रश्न- सीटो (SEATO) के उद्देश्य क्या हैं?
  49. प्रश्न- सार्क (SAARC) क्या है?
  50. प्रश्न- दक्षेस (SAARC) की उपयोगिता को संक्षेप में समझाइए।
  51. प्रश्न- “सामूहिक सुरक्षा शांति स्थापित करने का प्रयास है।" स्पष्ट कीजिये।
  52. प्रश्न- 'आसियान' क्या है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- गुटनिरपेक्षता (Non-Alignment) तथा तटस्थता (Neutrality) में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  54. प्रश्न- शक्ति सन्तुलन को एक नीति के रूप में समझाइये।
  55. प्रश्न- सामूहिक सुरक्षा और संयुक्त राष्ट्र संघ पर एक टिप्पणी कीजिए।
  56. प्रश्न- निःशस्त्रीकरण को परिभाषित कीजिये।
  57. प्रश्न- निःशस्त्रीकरण और आयुध नियंत्रण में क्या अन्तर है?
  58. प्रश्न- शस्त्र नियंत्रण और निःशस्त्रीकरण में क्या सम्बन्ध है?
  59. प्रश्न- राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये आन्तरिक व बाह्य खतरों की व्याख्या कीजिये।
  60. प्रश्न- राष्ट्रीय सुरक्षा के अन्तर्गत भारत को अपने पड़ोसी राष्ट्र पाकिस्तान तथा चीन से सम्बन्धित खतरों का उल्लेख कीजिए।
  61. प्रश्न- 'चीन-पाकिस्तान धुरी एवं भारतीय सुरक्षा' पर एक निबन्ध लिखिए।
  62. प्रश्न- राष्ट्रीय सुरक्षा से आप क्या समझते हैं?
  63. प्रश्न- राष्ट्रीय सुरक्षा के महत्व एवं अर्थ की व्याख्या कीजिये।
  64. प्रश्न- गैर-सैन्य खतरों से आप क्या समझते हैं? उनसे किसी राष्ट्र को क्या खतरे हो सकते हैं?
  65. प्रश्न- देश की आन्तरिक सुरक्षा से आप क्या समझते हैं? वर्तमान समय में भारतीय आन्तरिक सुरक्षा के लिए मुख्य खतरों की विवेचना कीजिए।
  66. प्रश्न- भारत की आन्तरिक सुरक्षा हेतु चुनौतियाँ कौन-कौन सी है? वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- रक्षा की अवधारणा बताइए।
  68. प्रश्न- खतरे की धारणा से आप क्या समझते हैं? भारत की सुरक्षा के खतरों की समीक्षा कीजिए।
  69. प्रश्न- राष्ट्र की रक्षा योजना क्या है और इसकी सफलता कैसे निर्धारित होती है?
  70. प्रश्न- "एक सुदृढ़ सुरक्षा के लिए व्यापक वैज्ञानिक तकनीकी एवं औद्योगिक आधार की आवश्यकता है।" विवेचना कीजिये।
  71. प्रश्न- भारत के प्रक्षेपास्त्र कार्यक्रम पर प्रकाश डालते हुए विकसित प्रक्षेपास्त्रों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  72. प्रश्न- पाकिस्तान की आणविक नीति का भारत की सुरक्षा पर पड़ने वाले प्रभाव का परीक्षण कीजिये।
  73. प्रश्न- चीन के प्रक्षेपात्र कार्यक्रमों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- चीन की परमाणु क्षमता के बारे में बताइए।
  75. प्रश्न- भारतीय मिसाइल कार्यक्रम पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
  76. प्रश्न- भारत की नाभिकीय नीति का संक्षेप में विवेचन कीजिये।
  77. प्रश्न- भारत के लिये नाभिकीय शक्ति (Nuclear Powers ) की आवश्यकता पर एक संक्षिप्त लेख लिखिये।
  78. प्रश्न- पाकिस्तान की परमाणु नीति की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  79. प्रश्न- पाकिस्तान की मिसाइल क्षमता की विवेचना कीजिए।
  80. प्रश्न- क्या हथियारों की होड़ ने विश्व को अशान्त बनाया है? इसकी समीक्षा कीजिए।
  81. प्रश्न- N. P. T. पर बड़ी शक्तियों के दोहरी नीति की व्याख्या कीजिए।
  82. प्रश्न- व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबन्ध संधि (CTBT) के सैद्धान्तिक रूप की विवेचना कीजिए।
  83. प्रश्न- MTCR से आप क्या समझते हैं?
  84. प्रश्न- राष्ट्रीय मिसाइल रक्षा (NMD) से आप क्या समझते हैं?
  85. प्रश्न- परमाणु प्रसार निषेध संधि (N. P. T.) के अर्थ को समझाइए एवं इसका मूल उद्देश्य क्या है?
  86. प्रश्न- FMCT क्या है? इस पर भारत के विचारों की व्याख्या कीजिए।
  87. प्रश्न- शस्त्र व्यापार तथा शस्त्र सहायता में क्या सम्बन्ध है? बड़े राष्ट्रों की भूमिका क्या है? समझाइये |
  88. प्रश्न- छोटे शस्त्रों के प्रसार से आप क्या समझते हैं? इनके लाभ व हानि बताइये।
  89. प्रश्न- शस्त्र दौड़ से आप क्या समझते हैं?
  90. प्रश्न- शस्त्र सहायता तथा व्यापार कूटनीति से आप क्या समझते हैं?
  91. प्रश्न- शस्त्र व्यापार करने वाले मुख्य राष्ट्रों के नाम बताइये।
  92. प्रश्न- राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये वाह्य व आन्तरिक चुनौतियाँ क्या हैं? उनसे निपटने के उपाय बताइये।
  93. प्रश्न- भारत की सुरक्षा चुनौती को ध्यान में रखते हुए विज्ञान एवं तकनीकी प्रगति की समीक्षा कीजिए।
  94. प्रश्न- भारत में अनुसंधान तथा विकास कार्य (Research and Development) पर प्रकाश डालिए तथा रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठनों का भी उल्लेख कीजिए।
  95. प्रश्न- "भारतीय सैन्य क्षमता को शक्तिशाली बनाने में रक्षा उद्योगों का महत्वपूर्ण योगदान होता है।' उपरोक्त सन्दर्भ में भारत के प्रमुख रक्षा उद्योगों के विकास का उल्लेख कीजिए।
  96. प्रश्न- नाभिकीय और अंतरिक्ष कार्यक्रम के विशेष सन्दर्भ में भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास पर एक निबन्ध लिखिए।
  97. प्रश्न- "एक स्वस्थ्य सुरक्षा के लिए व्यापक वैज्ञानिक तकनीकी एवं औद्योगिक आधार की आवश्यकता है।" विवेचना कीजिए।
  98. प्रश्न- रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डी.आर.डी.ओ.) पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  99. प्रश्न- भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) पर एक संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए

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